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जीवन बहती धारा

  • Writer: Shreyas Khopkar
    Shreyas Khopkar
  • Mar 22
  • 1 min read


जीवन बहती धारा जैसी, रुक न सके, थमे न कहीं,

कभी लगे ये शांत सरिता, कभी उठे लहरों में वहीं।


धूप-छाँव के खेल निराले, सुख-दुख का संग चलता,

कभी लगे मधुबन जैसा, कभी लगे मरुथल जलता।


हर मोड़ पे सीख छुपी है, हर दर्द में प्यार बसा,

संघर्षों की आँधियों में ही, सपना कोई नया खिला।


चलो बहें इस धारा संग, मंज़िल की ओर बढ़ते जाएँ,

हर पल को हँसकर जी लें, आशा के दीप जलाएँ।

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